उत्तराखंड में सरकारी नाौकरियां क्या नेता आौर माफिया मिल कर बेच रहे हैं? चयन आयोग के अध्यक्ष एस राजू ने इस्तीफा देने से पहले इस ओर साफ-साफ इशारा कर दिया है। यदि ऐसा है तो राज्य के युवाओं के साथ यह सबसे बड़ा धोखा है। युवाओं के सपनों को इस तरह चकनाचूर करने वाले ऐसे लोगों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाना चाहिए।
उत्तराखंड में समूह ग स्तर की भर्तियों का पूरा करने के लिए 2014 में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का गठन किया गया था। लेकिन शुरुआत से ही आयोग की भर्तियों पर सवाल उठते रहे, इसी पृष्ठभूमि में आयोग के लगातार दूसरे अध्यक्ष को इस्तीफा देकर बैरंग लौटना पड़ा।
2014 में इस स्वतंत्र आयोग को गठित किए जाने के समय रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी आरबीएस रावत को अध्यक्ष नियुक्त किया गया। लेकिन उनके कार्यकाल में आयोजित भर्तियों पर भी सवाल उठते रहे। 2016 में आयोजित वीपीडीओ भर्ती में बड़े पैमाने पर गोलमाल के आरोप लगे। जिसकी विजिलेंस जांच के दौरान पता चला कि परीक्षा के बाद मूल्यांकन के लिए लाई गई ओएमआर शीट से छेड़छाड़ कर रिजल्ट प्रभावित किया गया। इस कारण उक्त परीक्षा निरस्त करनी पड़ी। तत्कालीन अध्यक्ष आरबीएस रावत ने तब इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था।
और अब ठीक ऐसे ही हालात में एस राजू ने भी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया है। इससे भर्ती माफिया की गहरी जड़ों का अंदाजा लगाया जा सकता है। रिटायर्ड अपर मुख्य सचिव रहे एस राजू का आयोग में कार्यकाल आगामी 26 सितंबर को समाप्त हो रहा था।
यूबीटीआर की भर्ती भी रही विवादित:
यूकेएसएसएससी गठन से पहले उत्तराखंड में समूह ग स्तर की भर्ती कराने की जिम्मेदारी उत्तराखंड प्राविधिक शिक्षा परिषद (यूबीटीआर) के पास थी। यूबीटीआर की ओर से आयोजित जेई भर्ती भी इसी कारण निरस्त करनी पड़ी थी। यूबीटीआर की कई भर्तियों पर संगीन आरोप लगे, लेकिन किसी मामले में कोई ठोस जांच या कार्यवाही नहीं हुई। लेकिन यूबीटीआर के जवाब में बनाया गया आयोग भी अपनी भूमिका में फेल हो गया है।