देहरादून: Uttarakhand weather उत्तराखंड में इस बार सर्दियां न केवल जल्दी दस्तक देंगी बल्कि 20 दिनों तक अधिक लंबी चलेंगी। साथ ही, Record snowfall in Uttarakhand का अनुमान है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ‘ला नीना‘ के प्रभाव के चलते इस बार उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान में तीव्र गिरावट दर्ज की जाएगी, जिससे सर्दी का प्रकोप और भी कड़ा हो सकता है।
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आमतौर पर उत्तराखंड में कड़ाके की ठंड 40 से 50 दिनों तक रहती है, लेकिन इस बार यह अवधि 60 दिनों तक खिंच सकती है। ला नीना के कारण दिसंबर से ही मध्य हिमालय में भारी बर्फबारी का सिलसिला शुरू होने की संभावना है, जबकि आमतौर पर बर्फबारी का दौर जनवरी और फरवरी में देखने को मिलता है। ठंड का मौसम इस बार सामान्य से अधिक लंबा और तीव्र हो सकता है, जो कि उत्तराखंड का मौसम बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत है। Winter forecast Uttarakhand
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क्या है ‘ला नीना’ और इसका असर?
एरीज के वायुमंडल वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र सिहं के अनुसार La Niña effect प्रशांत महासागर के भूमध्यरेखीय क्षेत्र में समुद्र के तापमान में गिरावट का एक मौसमी पैटर्न है, जो वैश्विक जलवायु पर असर डालता है। इसके चलते उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान सामान्य से ज्यादा गिरता है, जिससे सर्दी का मौसम और कठोर हो जाता है। इस साल भी इसी पैटर्न के कारण उत्तराखंड में ठंड और बर्फबारी के दिनों में बढ़ोतरी होने की संभावना है। snowfall in Uttarakhand
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इसके अलावा, पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता से उत्तराखंड में हिमपात की तीव्रता भी बढ़ेगी। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल जनवरी-फरवरी के बजाय दिसंबर से ही ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी की शुरुआत हो सकती है। इससे उत्तराखंड का मौसम 2024 में काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
मॉनसून भी हुआ लंबा
इस साल उत्तराखंड में मॉनसून भी करीब 10 दिन लंबा खिंच गया है। जहां आमतौर पर 20 सितंबर के बाद बारिश कम हो जाती है, वहीं इस बार बंगाल की खाड़ी में वायु के कम दबाव के कारण वर्षा का सिलसिला जारी है। मौसम विभाग के अनुसार, 29 सितंबर से 4 अक्टूबर के बीच मॉनसून की विदाई का अनुमान है। इस वर्ष का मॉनसून भी कई रिकॉर्ड तोड़ रहा है, और इसका असर हिमालयी जलवायु पर भी देखा जा सकता है।
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संभावित खतरे और तैयारियां
उत्तराखंड में मौसम का यह बदलाव जनजीवन को प्रभावित कर सकता है। कृषि, पर्यटन, और बुनियादी ढांचे पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है। राज्य प्रशासन को इसके लिए पहले से ही तैयार रहने की आवश्यकता है, ताकि सड़कें और अन्य सेवाएं बाधित न हों।