नेपाल के साथ चीन के व्यापार मार्ग खोलने के बावजूद
देहरादून: चीन ने पांच साल बाद नेपाल सीमा से जुड़े 14 व्यापारिक दर्रों को फिर से खोल दिया है। अब भारत के पिथौरागढ़ जिले से लगे नेपाल के छांगरू और तिंकर गांव के व्यापारी चीन के साथ व्यापार कर रहे हैं। लेकिन भारतीय व्यापारियों को लिपुलेख दर्रे से व्यापार की अनुमति नहीं मिल रही है। हालांकि, भारतीय शिवभक्तों ने इस बाधा को पार कर लिया है और भारतीय व्यापारियों की चीन पर निर्भरता को खत्म कर दिया है। India China Trade
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दरअसल, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की दारमा और व्यास घाटियों के लोग सदियों से तिब्बत के साथ व्यापार करते आए हैं। 2019 में, चीन ने कोरोना महामारी का बहाना बनाकर भारत और नेपाल के साथ व्यापार को बंद कर दिया। इसके चलते तिब्बत के ताकलाकोट या बुरंग में भारतीय व्यापारियों का करोड़ों का सामान फंसा रह गया, जिससे उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा। हाल ही में, चीन ने नेपाल को व्यापार फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी, लेकिन भारतीय व्यापारियों को अभी तक यह छूट नहीं मिली है। India China Trade
इन परिस्थितियों में, पिछले पांच सालों में भारत सरकार ने पिथौरागढ़ की दारमा, व्यास और मिलम घाटियों में सड़कों का नेटवर्क मजबूत कर लिया है। इसके परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में पर्यटक अब इन क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल रहा है। घाटी में तेजी से होम स्टे खुलने लगे हैं, जिससे यहां के लोगों की तिब्बत व्यापार पर निर्भरता को कम किया जा रहा है। India China Trade
दारमा घाटी के निवासी बलवंत सिंह बताते हैं कि तिब्बत व्यापार बंद होने से काफी नुकसान हुआ। “हमारा बहुत सारा सामान वहां छूट गया और कोई इसकी भरपाई नहीं कर रहा,” उन्होंने कहा। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी के आने के बाद से आदिकैलाश और ओम पर्वत तक पहुंचने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हुई है। “पर्यटन काफी बढ़ गया है और होम स्टे खुलने से जीवन पटरी पर लौटने लगा है,” सिंह ने जोड़ा।
उधर, नेपाल के छांगरू और तिंकर गांवों के व्यापारी चीन के साथ व्यापार फिर से शुरू कर चुके हैं। दर्जनों व्यापारी गुड़, मिश्री आदि सामान घोड़ों और खच्चरों पर लादकर ताकलाकोट (चीन) ले जा रहे हैं। इसके बदले, वे वहां से जूते, जैकेट और याक की पूंछ लेकर लौट रहे हैं। भारत के गर्ब्यांग गांव में ढाबा चलाने वाले धनराज सिंह गर्ब्याल बताते हैं कि उनके पुरखे सदियों से लिपुलेख दर्रे से तिब्बत के साथ व्यापार करते थे। “62 के युद्ध के बाद यह व्यापार बंद हो गया, लेकिन 1992 में कुछ प्रतिबंधों के साथ इसे फिर से शुरू किया गया। 2019 में कोरोना महामारी के बाद फिर से इसे बंद कर दिया गया,” गर्ब्याल ने बताया।