दिल्ली:Narendra Modi coalition government नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को लोकसभा चुनाव में अपेक्षित बहुमत नहीं मिला है। एनडीए में शामिल 36 दलों ने प्रधानमंत्री पद के लिए Narendra Modi के नाम पर सहमति जताई है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि नरेंद्र मोदी गठबंधन की सरकार को कैसे चलाएंगे? अब नरेंद्र मोदी को ना सिर्फ क्षेत्रीय दलों के साथ सामंजस्य बैठाना होगा बल्कि मजबूत विपक्ष से भी निपटना होगा।
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क्षेत्रीय दलों का बढ़ता कद
इस बार चुनाव परिणामों में क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन शानदार रहा है। NDA और INDIA गठबंधन दोनों में ही क्षेत्रीय दलों ने प्रभावशाली प्रदर्शन किया है। एनडीए में टीडीपी और जदयू मुख्य सहयोगी बनकर उभरे हैं। टीडीपी ने आंध्रप्रदेश में विधानसभा चुनाव में भी शानदार जीत दर्ज की है। JDU ने बिहार में बीजेपी से कम सीटों पर चुनाव लड़कर अधिक सीटें जीती हैं। टीडीपी को 16 सीटें और जेडीयू को 12 सीटें मिली हैं। इस प्रकार केंद्र में बनने वाली नई सरकार में इन दलों की भूमिका अहम होगी।
राम मंदिर का मुद्दा भी भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं दिला पाया
मजबूत होता विपक्ष
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पिछले दस सालों में दो बार पूर्ण बहुमत प्राप्त किया है। लेकिन इस बार कांग्रेस और इंडिया गठबंधन ने जबरदस्त वापसी की है। अब मोदी सरकार के लिए मनमाने कानून पास कराना आसान नहीं होगा। टीडीपी और जेडीयू भी उन मुद्दों पर विरोध जता सकते हैं जिनसे उन्हें नुकसान होने का अंदेशा होगा।
सहयोगियों को मिलेंगे महत्वपूर्ण मंत्रालय
BJP के अपने दम पर बहुमत न मिलने का असर इस बार मंत्रिमंडल के बंटवारे पर साफ दिखाई देगा। क्षेत्रीय दल इस बार अधिक मोलभाव करने की स्थिति में होंगे। यदि जेडीयू और TDP के कोटे से मंत्री बने तो आश्चर्य नहीं होगा। पिछले कार्यकाल में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों को ज्यादा महत्व नहीं दिया था, लेकिन इस बार स्थिति अलग होगी।
अहम निर्णयों पर आम सहमति आवश्यक
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लेने से पहले सहयोगी दलों से विचार-विमर्श आवश्यक हो जाएगा। एक देश, एक चुनाव और समान नागरिक कानून जैसे मुद्दों पर निर्णय लेने से पहले बीजेपी को सहयोगी दलों की सहमति लेनी होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो सहयोगी दलों के अलग होने का खतरा रहेगा।
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नीतीश और नायडू का महत्व
NDA सरकार के तीसरे कार्यकाल में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। दोनों नेता पहले भी बीजेपी के साथ काम कर चुके हैं, लेकिन इस बार उनकी स्थिति मजबूत है। बीजेपी को इन नेताओं की नाराजगी मोल लेना मुश्किल होगा। चंद्रबाबू नायडू तो एनडीए के संयोजक भी रह चुके हैं और आंध्र प्रदेश में सत्ता में भी हैं। वे केंद्र से आंध्र प्रदेश के लिए अतिरिक्त सहायता प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं।