पिथौरागढ़: Hiljatra Pithoragarh उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में हिलजात्रा त्यौहार मनाया जा रहा है। यह मुखौटा नृत्य पर्व कृषि, पशुपालन और संस्कृति का प्रतीक है। इस उत्सव में लोग अनोखे मुखौटे पहनकर मेहनती महिलाओं, पशुओं और भूतों का सम्मान करते हैं।
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हिलजात्रा की शुरुआत सातू-आंठू से होती है और यह पर्व कृषि जीवन का हिस्सा है, खासकर पिथौरागढ़ के क्षेत्रों में। कुमौड़ की हिलजात्रा सबसे प्रसिद्ध है, जहां बैल, हिरन और धान रोपती महिलाएं शामिल होती हैं, जो कृषि और पशु-प्रेम को दर्शाते हैं। यह पर्व लखिया भूत के आगमन से समाप्त होता है, जिसे भगवान शिव का गण माना जाता है। Hiljatra Pithoragarh
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लखिया भूत lakhiya bhut की डरावनी आकृति पर्व का मुख्य आकर्षण है, और माना जाता है कि वह समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद देता है। इस किरदार को निभाना महेंद्र महर के लिए एक ईश्वरीय अनुभव है। हर साल हजारों लोग इसे देखने आते हैं, और पात्रों को प्रभावशाली अभिनय के लिए विशेष तैयारी करनी होती है। यह पर्व मनोरंजन, धार्मिक आस्था और कृषि जीवन का प्रतीक है।
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जंजीरों से बांधकर लाया जाता है लखिया भूत
लखिया भूत को जंजीरों से बांधकर मैदान में लाया जाता है। मान्यता है कि वीरभद्र के स्वरूप लखिया भूत भगवन शिव की जटाओं से उत्पन्न हुए। उनका स्वभाव बेहद गुस्सैल माना जाता है। मैदान पर आते ही उसे जंजीरों से जकड़ लिया जाता है। हिलजात्रा में बैल, हिरण, चीतल सहित कई अन्य पात्र मुखौटे से ही बनाए जाते हैं। Hiljatra Pithoragarh
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चार भाई नेपाल से कुमाऊं लेकर आए पर्व
कुमौड़ की हिलजात्रा की कहानियां भी उतनी ही प्रसिद्ध हैं। इस उत्सव का श्रेय चार वीर महर भाइयों को जाता है, जो इंद्रजात्रा के समय नेपाल गए थे। वहां उन्होंने एक भैंसे को मारकर राजा को प्रसन्न किया। राजा ने उन्हें इस उत्सव को अपने क्षेत्र में मनाने की अनुमति दी। महर भाइयों ने मुखोटे लेकर कुमौड़ पहुंचकर उत्सव मनाया। तब से यह हर वर्ष मनाया जाता है। Uttarakhand culture