Dehradun: उच्च हिमालय में Global Warming का असर अब इंसानों की जीवनशैली पर साफ़ नजर आने लगा है। उत्तराखंड के के ऊंचे पहाड़ी गांवों से हर साल सर्दियों में लोग निचले गर्म इलाकों में आ जाती हैं। और गर्मियों में अप्रैल से वापस अपने गांवों की ओर लौटने लगते हैं। पर प्रवासी इस बार तय समय से एक-डेढ़ महीने पहले ही वापस लौटने लगे हैं। इसका कारण है, अप्रत्याशित रूप से गर्म होती जलवायु। जिसने उच्च हिमालय के रहवासियों की जीवन शैली को बदल दिया है।Global Warming Impact in Uttarakhand
Snowfall in Uttarakhand Declines by 90% After Eight Years
मार्च के अंत तक हिमालयी रास्ते बर्फ से ढके रहते थे, लेकिन इस बार ये पहले ही खुल गए हैं। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के 31 गांवों से हर साल 3,000 लोग उच्च हिमालयी क्षेत्र में प्रवास करते हैं। पहले मार्च-अप्रैल में भारी बर्फ होती थी, लेकिन अब बर्फबारी कम हुई है। इस बार दिन का तापमान 16 डिग्री और रात का माइनस 2 डिग्री है, जबकि फरवरी 2022 में ये अधिकतम 10 डिग्री और न्यूनतम माइनस 4 डिग्री था। इस परिवर्तन के कारण लोग अब बुधी, गर्बियांग, गूंजी आदि गांवों में लौटने लगे हैं।
Read: In winters of the Himalayas, oak forests release more carbon
खेती पर भी पड़ा असर
बदलते मौसम का असर खेती और प्रवास पर पड़ रहा है। दिलिंग दारमा सेवा समिति के महासचिव दिनेश चलाल के अनुसार, अब उच्च हिमालयी गांवों में खेती की तैयारी मार्च के पहले हफ्ते में करनी पड़ रही है, जबकि पहले यह काम अप्रैल में होता था। यहां आलू, पहाड़ी लहसुन, राजमा, कुटकी, चीवी जैसी फसलें उगाई जाती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पारंपरिक खेती और जड़ी-बूटी उत्पादन पर यह बदलाव बुरा असर डाल सकता है। कई औषधीय पौधे और खाद्यान्न, जो ठंडे वातावरण में होते थे, अब प्रभावित हो सकते हैं।
हिमालय में नई चुनौतियों बना रहा मौसम
बर्फबारी में कमी हिमालय के तेज़ बदलाव का संकेत है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर यह रुख जारी रहा, तो हिमालयी पारिस्थितिकी और मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। पहाड़ी जड़ी बूटियों का उत्पादन कम होगा और उन्हें उगाने के लिए उच्च खेत बनाने पड़ेंगे। स्थानीय निवासी पार्वती गूंजियाल कहती हैं कि इससे खेती का समय बढ़ जाएगा, लेकिन मौसम बदलाव से खेती को खतरा भी है। Global Warming Impact in Uttarakhand