नैनीताल: Gb pant अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठ 22 जनवरी को होने जा ही है। पर राम मंदिर निर्माण और इसके विवादों का एक लंबा इतिहास रहा है। मंदिर के इतिहास में कांग्र्रेस नेता व संयुक्त प्रांत के प्रथम मुख्यमंत्री भारत रत्न पं. गोविंद बल्लभ पंत का भी है। कम ही लोगों को पता होगा कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण की पहली नीव गोविंद बल्लभ पंत ने रखी थी। 1949 में जब पहली बार यहां रामलला की मूर्ति प्रकट हुई उस समय पंत ही तबके संयुक्त प्रांत यानी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के लगातार दबाव के बाद भी अयोध्या से रामलला की मूर्ति हटाने से इन्कार कर दिया था। इसे लेकर कई एतिहासिक दस्तवेज भी उपलब्ध हैं। आइए जानते हैं श्रीराम मंदिर निर्माण के इतिहास से जुड़े इस बेहद महत्वपूर्ण तथ्य की कहानी।
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पंत के सीएम रहते ही प्रकट हुए थे रामलला
सबसे पहले 21 व 22 दिसंबर 1949 की रात को रामलला की मूर्ति पहली बार अयोध्या के स्थल पर प्रकट हुई। इसका पता चलते ही मंदिर के चारों ओर रहने वाले लोग आकर भगवान श्रीराम के दर्शन करने लगे। यहां भजन-कीर्तन होने लगे। पर कुछ ही समय बाद यहां सांप्रदायिक तनाव की स्थिति भी उत्पन्न होने लगी। शुरूआत दौर में यह केवल स्थानीय बात थी। इसलिए राज्य सरकार ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। पर समय के साथ यहां पर विवाद बढ़ा तो मामला तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तक भी पहुंच गया। इसे लेकर Neerja Chowdhury की किताब how prime minister decide में कई तथ्य रखे गए हैं
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विभाजन की हिंसा से उबर रहा था देश
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नहीं चाहते थे कि मंदिर विवाद के कारण किसी तरह का सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़े। देश दो साल पहले ही आजाद हुआ था। बंटवारे के बाद देशभर में दंगे हुए थे। देश विभाजन की विभिषिका और हिंसा के जख्म से अभी उबरने की ही कोशिश कर रहा था। कश्मीर में भारत व पाकिस्तान के बीच जंग के हालत बने हुए थे। ऐसे में मंदिर मस्जिद के नाम पर सांप्रदायिक तनाव बढ़ना देश के लिए एक नई समस्या बन जाती। ऐसे में नेहरू चाहते थे कि तनाव को किसी तरह रोका जाए।
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नेहरू ने मूर्ति हटाने के लिए पंत को टेलीग्राम भेजे
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 26 दिसंबर 1949 को तत्कालीन घटना में दखल देने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत को पत्र भेजा। जिसमें लिखा कि, ‘मैं अयोध्या के घटनाक्रम से चिंतित हूं। क्योंकि वहां पर बहुत खतरनाक उदाहरण पेश किए जा रहे हैं जिसके भविष्य में बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं’। पर गोविंद बल्लभ पंत मंदिर से मूर्ति ना हटाने का निर्णय लिया। कुछ समय बाद मामला कोर्ट पहुंच गया। जिसके बाद जवाहरलाल नेहरू ने फिर पांच फरवरी 1950 को जीबी पंत को पत्र भेजा। जिसमें लिखा, ‘मुझे बहुत खुशी होगी अगर आप अयोध्या के हालात के बारे में सूचना देते रहेंगे। आप जानते हैं इस मामले से पूरे भारत और कश्मीर पर असर पड़ेगा। अगर जरूरत पड़े तो मैं अयोध्य चला जाऊंगा, हालांकि मैं बहुत व्यस्त हूं’। पंत जी ने नेहरू को जवाब भेजा ‘स्थितियां बड़ी खराब हैं। अयोध्या में मूर्ति हटाने का प्रयत्न किया गया तो भीड़ को नियंत्रित करना कठिन होगा’।
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प्रियदत्त बाबू को रिसीवर बना दिया
मूर्ति रखे जाने के तीसरे दिन 25 दिसंबर, 1949 को स्थानीय प्रशासन ने विवादित स्थल को धारा-145 के तहत कुर्क कर लिया। मूर्ति के भोग, राग, आरती तथा व्यवस्था के लिए बाबू प्रियादत्त राम जो शहर के प्रमुख रईस तथा नगरपालिका फ़ैज़ाबाद के अध्यक्ष थे, उनकी तैनाती रिसीवर के रूप में कर दी। अयोध्या का प्रश्न विधानसभा में 31 अगस्त, 1950 में उठा। इसमें मुख्य मुद्दे ज़िले का सांप्रदायिक वातावरण, 6 सितंबर 1950 को अक्षय ब्रह्मचारी का प्रस्तावित अनशन तथा 14 सितंबर, 1950 को अयोध्या में सांप्रदायिक मामले के कारण शांतिभंग की आशंका के थे।Gb pant and Nehru