नैनीताल: coke studio rajula-malusahi. उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में राजुला और मालू शाही की प्रेम कहानी काफी प्रचलित है। उत्तराखंड के पारंपरिक गीतों में इन दोनों की कई कथाओं को स्थानीय लोक कलाकार अपनी आवाज में गाते आए हैं। पर Coke studio india ने राजुला और मालू शाही की कहानी को एक नए अवतार में पेश किया है।यह गाना 8 मई को रिलीज किया जाने वाला है। जिसे उत्तराखंड की लोकगायिका कमला देवी और गायिका नेहा कक्कड़ ने भी अपनी आवाज दी है.
कुमाऊं की होली आखिर क्यों है प्रसिद्ध
लोकगायिका कमला देवी देंगी अपनी आवाज
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले की गरुड़ तहसील स्थित लखनी गांव की रहने वालीं कमला देवी के कंठ में साक्षात सरस्वती निवास करती हैं. वह उत्तराखंड की जागर गायिका हैं. कमला देवी बताती हैं कि उनका बचपन गाय-भैंसों के साथ जंगल और खेत-खलिहानों के बीच बीता. इस बीच 15 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई. ससुराल आईं तो यहां भी घर, खेतीबाड़ी में ही लगी रहीं. वह कहती हैं कि उन्हें न्यौली, छपेली, राजुला, मालूशाही, हुड़कीबोल आदि गीतों को गाने का शौक था. जंगल जाते वक्त वह गुनगुनाती और अपनी सहेलियों को भी सुनाती थीं. अब उन्हें कोक स्टूडियो में गाने का मौका मिला।
कौन थे राजुला और मालूशाही
राजुला-मालूशाही एक पुरानी मध्यकालीन प्रेम कहानी और उत्तराखंड की लोककथा है । इसमें शौका परिवार की राजकुमारी राजुला और कुमाऊं के कत्यूरी राजवंश के राजकुमार मालूशाही के बीच प्रेम का वर्णन है।
सबसे लोकप्रिय कहानी
इसे कुमाऊँ की सबसे लोकप्रिय लोककथाओं में से एक माना जाता है । यह कुमाऊं में लगभग हजार वर्षों से प्रदर्शित किया जा रहा है और पारंपरिक भाटों के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से प्रसारित होता रहा है, मोहन उप्रेती ने महाकाव्य गाथा को क्षेत्रीय और राष्ट्रीय थिएटरों पर लाया, 1980 में भारत की संगीत नाटक अकादमी ने महाकाव्य गाथा पर पुस्तक प्रकाशित की राजुला-मालूशाही।
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