नैनीताल: Stone-pelting ritual उत्तराखण्ड के चंपावत जिले के वाराही मंदिर में रक्षाबंधन के पर्व पर प्रसिद्ध पत्थरों की बग्वाल खेली गई। देवीधुरा में 11 मिनट चली बग्वाल में 212 लोग घायल हो गए। दर्शक दीर्घा में बैठे कई लोग भी चोटिल हुए। भारी कोहरे के बीच सोमवार को पुजारी के शंखनाद के बाद बग्वाल शुरू हुई। चंवर झुला कर पुजारी ने किया बग्वाल खत्म करने संकेत दिए। devidhura बग्वाल मेले में एकादशी को सांगी पूजन के बाद रविवार चतुर्दशी को सुबह से ही मां वाराही के विराट पूजन के साथ ही कलुवा बेताल को प्रसन्न किया गया। उसके बाद सोमवार को मंदिर के पीठाचार्य कीर्तिबल्लभ जोशी ने चारों खामों की विराट पूजा कराई और दो अगला बजे के बाद बग्वाल शुरू हुई।
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देवीधुरा की बग्वाल उत्तराखंड के चंपावत जिले में देवीधुरा नामक स्थान पर मनाई जाती है। यह एक प्राचीन और अद्वितीय त्योहार है, जिसे रक्षा बंधन के अवसर पर मनाया जाता है। बग्वाल का आयोजन देवी बाराही मंदिर के प्रांगण में होता है, और इसमें दो समूहों के बीच पत्थरों की बौछार होती है। यह त्योहार स्थानीय लोक परंपराओं, आस्थाओं और साहस का प्रतीक है।
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बग्वाल मनाने के पीछे की कहानी
बग्वाल मनाने के पीछे एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है। मान्यता है कि बहुत समय पहले देवीधुरा क्षेत्र में रहने वाले चार प्रमुख खाम (कुलों) – चम्याल, वालिक, गहड़वाल, और लमगड़िया – देवी बाराही की पूजा किया करते थे। यह माना जाता था कि हर साल देवी बाराही को मानव बलि चढ़ाई जानी चाहिए ताकि क्षेत्र में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।Stone-pelting ritual
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चारों खामों के बीच से हर साल एक व्यक्ति को बलि के लिए चुना जाता था। एक साल, जब यह निर्णय लेना मुश्किल हो गया कि किस खाम से बलि दी जाए, तब चारों खामों ने मिलकर एक नया तरीका खोजा। उन्होंने बलि की जगह पर पत्थर मारने की बग्वाल (युद्ध) करने का निर्णय लिया। इस बग्वाल में जो खून निकलता था, उसे देवी के लिए बलि के रूप में स्वीकार किया जाता था, और इस प्रकार मानव बलि की आवश्यकता समाप्त हो गई।
बग्वाल की प्रक्रिया
बग्वाल में चारों खाम के लोग दो दलों में बंट जाते हैं और एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। यह परंपरा अत्यंत खतरनाक और साहसिक है, लेकिन इस त्योहार को मनाने का उद्देश्य देवी बाराही को प्रसन्न करना और उनकी कृपा प्राप्त करना होता है। पत्थर मारने का यह युद्ध तब तक चलता है जब तक कि देवी को खून की पहली बूंद अर्पित नहीं कर दी जाती। जैसे ही खून की पहली बूंद गिरती है, बग्वाल समाप्त हो जाती है और इसे देवी की कृपा का संकेत माना जाता है।Stone-pelting ritual