देहरादून: मंदिरों में चढ़ाए जाने के बाद फूल अक्सर कचरा बन जाते हैं। परंतु, उत्तराखंड की महिलाएं ने इन फूलों से एक अनोखा प्रयोग कर दिखाया है। मंदिर में चढ़ने के बाद बेकार हो रहे फूलों से उत्तराखंड की महिलाएं बेहद सुंदर प्रिंटेड साड़ियां printed-sarees तैयार कर रही हैं। इन साड़ियों का डिजाइन और खूबसूरती लोगों को खूब पसंद आ रही है। इस शानदार पहल से महिलाएं ना सिर्फ आर्थिक आजादी पाने की ओर बढ़ रही हैं, बल्कि अब कई दूसरी महिलाएं भी इस नई कला से जोड़ा जा रहा है। www.phyoli.com
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चेली आर्ट्स की तैयार साड़ी
इस अनोखे प्रयोग का प्रमुख आदान-प्रदान करने वाली डॉ. किरण तिवारी हैं, जो नैनीताल में ‘चेली आर्ट्स‘ cheli-arts नामक संस्था की संचालिका हैं। एक साल पहले, नैनीताल के प्रसिद्ध नैना देवी मंदिर में बेकार हो रहे फूलों ने उनकी धारणा को बदल दी। उन्होंने मंदिर में चढ़ने के बाद बचे फूलों को इकट्ठा करके उनकी पंखुड़ियों से सुंदर प्रिंटेड साड़ियां बनाईं। इन साड़ियों में फूलों की पंखुडियां, पत्तियां और प्याज के छिलके से भी प्रिंट तैयार किये जा रहे हैं, और ये प्राकृतिक रंगों से बनी हैं जिनका रंग धोने पर भी नहीं निकलता है।
पर्यावरण बचाने के साथ ही महिला उत्थान भी
Dr kiran डॉ. किरण ने शुरुआत में नैनीताल में एक स्टॉल लगाकर इन साड़ियों को बेचने का काम शुरु किया था। जल्दी ही, श्रद्धा में चढ़ाए गए फूलों से तैयार साड़ियों की लोकप्रियता बढ़ती चली गई। डॉ. किरण तिवारी इस कला को ‘बॉटनिकल आर्ट’ botnical art कहती हैं और कहती हैं कि इस प्रयोग से स्थानीय स्तर पर महिला आत्मनिर्भरता भी बढ़ रही हैं। साथ ही महिलाओं के फैशन कलेक्शन में एक नया ट्रेंड भी जुड़ गया है।
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ऑर्गेनिक धूप, कुमकुम भी बना रही
डा. किरण की ‘चेली आर्ट्स‘ प्राकृतिक होली के रंग, कुमकुम, टीका और धूप भी तैयार करती है। ये सभी उत्पाद पूरी तरह से ऑर्गेनिक होते हैं और इस काम के माध्यम से उन्होंने इलाके की 20 से अधिक महिलाओं को आर्थिक आजादी प्रदान की है। नैनीताल में जहां पर्यावरण एक बड़ा मुद्दा बन गया है, ‘चेली आर्ट्स’ की यह पहल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रही है।